एक डिनर की कीमत तुम क्या जानो पाकिस्तान वालों!
जब मेज़ पर सिर्फ खाना न हो, बल्कि रणनीति परोसी जा रही हो तो हर निवाला सवाल बन जाता है, और हर तस्वीर सुर्खी। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान आर्मी चीफ़ जनरल आसिम मुनीर के बीच हुआ हालिया डिनर, न तो कोई औपचारिक राज्य यात्रा थी, न ही कूटनीतिक मीटिंग का कोई आधिकारिक एजेंडा फिर भी, इस एक तस्वीर ने दुनिया के तमाम विश्लेषकों को चौंका दिया। ट्रंप मुस्कुरा रहे थे। मुनीर भी। लेकिन दोनों के चेहरे पर जो सबसे आम बात थी।वो था एक साझा उद्देश्य, जिसे अभी आधिकारिक शब्द नहीं मिले हैं मगर संकेत साफ हैं। डिनर की प्लेट में चुपचाप परोसी जा रही थी अमेरिका की ईरान नीति?
अमेरिका जानता है कि पाकिस्तान अब भी ईरान की ओर हसरत भरी निगाहों से देखता है। तेल, सड़क, और रणनीतिक गहराई के लिहाज़ से। लेकिन ट्रंप भी वही हैं जिन्होंने बार-बार दिखाया है कि ईरान उनका पुराना इमोशनल शत्रु है, और राजनीतिक मोहरा भी। ऐसे में यह डिनर अचानक ही मध्य-पूर्व की नई बिसात बन गया। जहाँ ट्रंप ईरान के खिलाफ पाकिस्तान को एक सब-कॉन्ट्रैक्टेड रणनीतिक साझेदार की तरह देख सकते हैं। मुनीर को अमेरिका में बुलाना सिर्फ 'सम्मान' नहीं था, बल्कि शायद एक वार्म-अप मीटिंग थी। जिसमें तय किया जा रहा था कि आने वाले वक्त में पाकिस्तान कहां खड़ा होगा, जब ट्रंप और ईरान आमने-सामने होंगे।
पाकिस्तान की स्थिति: भूखा पेट, मगर बड़े-बड़े वादों के साथ
Imf के सामने कर्ज़ के लिए घुटनों पर खड़ा मुल्क, अपने प्रधानमंत्री को छोड़, सेना प्रमुख को कूटनीतिक मोर्चे पर आगे कर रहा है, क्योंकि वहां जानते हैं कि जहां रोटी नहीं मिलती, वहां मोहरे बनना पड़ता है। ट्रंप का ये डिनर शायद वही सौदा था जहाँ ईरान के खिलाफ एक पजामा-पहने सैनिक को सूट में सजाकर पेश किया गया।
भारत के लिए सबक क्या है?
भारत इस पूरी स्थिति को सिर्फ कूटनीतिक मनोरंजन की तरह नहीं देख सकता। पाकिस्तान-ईरान-अमेरिका की कोई भी नज़दीकी या सौदेबाज़ी, सीधे हमारे पश्चिमी सीमा समीकरणों को प्रभावित करती है। लेकिन भारत जानता है कि ट्रंप जैसे नेता स्थिरता नहीं, सौदा चाहते हैं। पाकिस्तान की हालत ऐसी है कि जो सौदा सस्ता हो, वो चाहे आत्मसम्मान का हो या संप्रभुता का वो भी कर लिया जाएगा।
सही मायने में यह सिर्फ एक डिनर नहीं था, यह पाकिस्तान के लिए अमेरिकी एजेंडे में घुल जाने का पहला कोर्स था। ट्रंप जानते हैं कि ईरान पर दबाव बनाने के लिए उनके पास हथियार हैं, लेकिन ज़मीन पर खेल खेलने वाले ‘मोहरों’ की जरूरत है। और पाकिस्तान, हमेशा की तरह, खुद को उसी के लिए उपलब्ध दिखा रहा है। आखिर, जब देश की विदेश नीति रावलपिंडी की कैंटीन में तैयार होती हो तो व्हाइट हाउस की टेबल पर बैठना कोई बड़ी जीत नहीं, एक बहुत बड़ा इशारा होता है तुम अब हमारे साथ हो, हमारे लिए हो।


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